इंद्रियां ज्ञान का अनुभव कैसे करती है,How the senses perceive knowledge

हम किसी वस्तु को देखते हैं या अनुभव करते हैं, तो हम उसके बारे में सोचते हैं। हमारी भाषा हमारे विचारों का प्रतिबिंब होती है। हम जो भी सोचते हैं, उसे शब्दों में व्यक्त करते हैं। हमारी इंद्रियां महसूस करती हैं, देखती हैं, सुनती हैं और इसी आधार पर हमारा मस्तिष्क हमारे विचारों की शक्ति के आधार पर महसूस की गई, देखी और सुनी गई ध्वनि का आकलन करता है और उसे शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है। संसार के सभी लोगों के विचारों के आकलन की समानता अलग-अलग होती है। यही कारण है कि एक ही वस्तु को 10 लोग एक ही तरह से महसूस करते हैं और देखते हैं, लेकिन उन लोगों के विचार उस वस्तु के बारे में अलग-अलग होते हैं क्योंकि वे अपने विचारों के अनुसार अपने मन में उस वस्तु का आकलन करते हैं। यही कारण है कि एक ही वस्तु और एक ही भाषा होने के बावजूद दसों के शब्दों में अंतर होता है। विचार मानव मस्तिष्क में एक श्वेत चेतन प्रक्रिया है। विचार न तो वातावरण से प्रभावित होते हैं और न ही आस-पास के माहौल से। विचार स्वतंत्र होते हैं। विचारों का न तो ज्ञान से संबंध होता है और न ही अज्ञान से, विचारों का संबंध जीवन से होता है यही कारण है कि एक बुजुर्ग व्यक्ति के विचारों में उसके पूरे जीवन का अनुभव समाहित होता है, जो अन्य लोगों के लिए मार्गदर्शक का काम करता है। आज हम जिस मानव समाज में रह रहे हैं, इस समाज की नींव किसी न किसी समय किसी बुजुर्ग व्यक्ति ने अपने गहरे विचारों से रखी होगी, क्योंकि एक बुजुर्ग व्यक्ति ही अपने अनुभव से इतने महान विचार दे सकता है।मानव समाज में जब भी कोई विपत्ति आती है तो उसका समाधान किसी बड़े-बुजुर्ग द्वारा किया जाता है। आज भी परिवार में कोई समस्या हो तो उसका समाधान परिवार के बड़े-बुजुर्गों द्वारा किया जाता है। हर देश के प्रशासन में उन लोगों को अधिक सम्मान और महत्वपूर्ण पद दिए जाते हैं जिनके पास काम का अधिक अनुभव होता है। विचार स्वतंत्र होते हैं। कम पढ़े-लिखे लोग भी कभी-कभी ऐसी बातें कह देते हैं जो बड़े-बड़े विद्वान भी नहीं कह पाते। विचारों का संबंध जीवन के अनुभव से होता है। विचार जीवन का निर्माण नहीं करते, वे जीवन के अनुभव से बनते हैं। समय, परिस्थिति और वातावरण के अनुसार विचार बदलते रहते हैं। बचपन में किसी व्यक्ति या विचारधारा के बारे में व्यक्ति के मन में जो विचार आते हैं या बचपन में किसी विचारधारा या वस्तु के बारे में बच्चे के मन में जो विचार आते हैं, वही व्यक्ति जब बड़ा होता है तो वस्तु के बारे में उसके विचार बदल जाते हैं क्योंकि वह उस वस्तु का उपयोग करके या उसकी उपयोगिता को समझकर अपने विचार बदल लेता है। विचार बदलते रहते हैं लेकिन जीवन वही रहता है क्योंकि विचारों से जीवन नहीं बदलता। अगर विचारों से जीवन बदलता तो हर बुजुर्ग व्यक्ति विद्वान होता क्योंकि बुजुर्गों के विचार सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।

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 विचार और सोच में थोड़ा सा अंतर होता है। जीवन में विचार और सोच साथ-साथ चलते हैं। एक साधारण व्यक्ति की सोच और विचार अलग अलग होते है, जबकि एक विद्वान या महापुरुष की सोच और विचार एक जैसे होतें है दोनों में कोई अंतर नहीं है, क्योंकि जब कोई व्यक्ति अपने भौतिक ज्ञान के दायरे से बाहर निकलकर आत्मज्ञान के दायरे में प्रवेश करता है, तो उसके विचार और सोच के बीच का अंतर समाप्त हो जाता है। उस व्यक्ति के लिए विचार ही सोच है और सोच ही विचार है। मनुष्य के मस्तिष्क में उसकी इंद्रियों के माध्यम से जो ज्ञान अनुभव होता है, वह सोच है। जब कोई व्यक्ति किसी चीज को देखकर या चखकर अनुभव करता है और उस ज्ञान को अपने जीवन में लागू करता है, तो वही ज्ञान सोच है।


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