प्रकृति क्या है, यह कैसे बनी, इसे किसने बनाया और यह कैसे काम करती है?

 


जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक जीव पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति सर्वश्रेष्ठ है। प्रकृति क्या है, यह कैसे बनी, इसे किसने बनाया और यह कैसे काम करती है? मनुष्य इन सवालों के जवाब लगातार खोजता रहा है और समय-समय पर मनुष्य आत्मचिंतन के जरिए इन सवालों के जवाब देता रहा है। कुछ समय तक मनुष्य इन उत्तरों को स्वीकार कर लेता है और दिए गए उत्तरों के अनुसार प्रकृति को परिभाषित करता है। दी गई परिभाषाओं के अनुसार ही मनुष्य प्रकृति का अर्थ निकालता है। इन अर्थों के अनुसार ही मनुष्य प्रकृति को देखता है और उसे समझने का प्रयास करता है। कुछ समय बाद जब मनुष्य के ज्ञान का दायरा बढ़ जाता है, उसके भीतर ज्ञान बढ़ जाता है तो वह इन सवालों के जवाब खोजने लगता है। इन सवालों के जवाब खोजने के लिए वह अपने ज्ञान के दायरे को लगातार बढ़ाने की कोशिश करता है। एक समय ऐसा आता है जब उसका ज्ञान निर्मलता के चरम पर पहुंच जाता है जहां से उसे आत्मज्ञान का अनुभव होने लगता है और वह व्यक्ति इसी आत्मज्ञान के आधार पर इन सवालों के जवाब देता है। आज तक धरती पर जिसने भी इन सवालों के जवाब दिए हैं, उसने अपने आत्मज्ञान के बल पर ही इन सवालों के जवाब दिए हैं।  प्रकृति ने हर जीव को कोई न कोई विशेष शक्ति दी है और उसके साथ ही सोचने की शक्ति भी दी है। साथ ही ये भी दिया है कि धरती पर सिर्फ मनुष्य ही ऐसा प्राणी नहीं है जो सोचता है। धरती पर हर जीव चाहे वो पशु हो, पक्षी हो, कीड़ा हो या पौधा हो, हर जीव जिसमें जीवन है, वो सोचता है क्योंकि इंसान की तरह हर जीव प्रकृति से जुड़ा हुआ है और प्रकृति का हिस्सा है। धरती पर हर जीव अलग-अलग तरीके से सोचता है। किसी भी जीव की सोच एक दूसरे से मेल नहीं खाती, ये प्रकृति की ताकत है। इंसान और बाकी जीवों की सोच में बस इतना ही फर्क है कि इंसान दूसरे जीवों की भलाई के बारे में सोचता है और बाकी सभी जीव अपने स्वार्थ के लिए अपने बारे में सोचते हैं। इंसान की परिभाषा भी यही है, जो दूसरों की भलाई के बारे में सोचता है, जिसके दिल में दया और प्यार है, वही इंसान है, वही इंसान है, वरना जानवर और इंसान में कोई फर्क नहीं है।


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