मैं संदीप सिंह सम्राट आप सभी को हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। आप सभी से मेरा विनम्र निवेदन है—“प्रकृति नमामि जीवनम्”—कि धरती पर जीवन को कायम रखने के लिए, समस्त जीव-जगत तथा पूरी मानवजाति के भविष्य की रक्षा हेतु हम सभी को एकजुट होकर प्रकृति को बचाना होगा।इसी से हमारा अपना जीवन सुरक्षित रह पाएगा और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी सुरक्षित हो सकेगा।धरती सभी जीवों का एकमात्र घर है, और हम मनुष्य भी इसी घर के निवासी हैं। हमारा पहला और वास्तविक घर यही धरती है। इसलिए हमें अपने इस घर की रक्षा करनी अनिवार्य है। धरती के सभी जीव हमारे अपने हैं, और उनकी सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हम सब प्रकृति की संतान हैं, और संतान का धर्म है कि वह अपनी माँ—माँ प्रकृति—की रक्षा करे, उसका आदर करे तथा उसके संरक्षण हेतु कार्य करे।धरती पर रहने वाला प्रत्येक जीव प्रकृति की ही संतान है—हमारा भाई, हमारी बहन। हमें सभी की सुरक्षा करनी है। हम सबको मिलकर प्रकृति को बचाना है, अपने घर को सुरक्षित रखना है और अपने प्राकृतिक परिवार को संरक्षित रखना है।
आइए, हम सब मिलकर अपने घर की रक्षा करें, उसे सुंदर बनाएँ और प्रकृति को पुनः खुशहाल करें।
हमारी मुहिम “एक धरती – एक भविष्य” में शामिल होकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। हमारी बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाएँ, ताकि हम सब मिलकर प्रकृति को पुनः पहले जैसा शांत, सुंदर और समृद्ध बना सकें।
हमारा नारा है—“एक धरती – एक भविष्य – एक मानवता”
आइए, इस उद्देश्य के लिए एक साथ प्रयास करें और धरती को सुरक्षित रखें।
आप सभी से निवेदन है कि हमारी इस पुण्य मुहिम को आगे बढ़ाने में सहयोग दें। हम आपसे कुछ नहीं माँगते—बस इतना अनुरोध करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाए और इस संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाए।
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हम सब मिलकर अपने घर—धरती—को सुरक्षित रखें।
आप सभी का छोटा-सा योगदान भी इस दुनिया को बदल सकता है।
आइए, मिलकर प्रकृति को बचाएँ और भविष्य को सुरक्षित बनाएँ।
धन्यवाद।
🔎 वैश्विक संस्थाओं की प्रमुख रिपोर्टों — वैज्ञानिक निष्कर्ष और सुझाव
IPCC की रिपोर्टें और मुख्य पाठ
IPCC की हालिया (AR6) एवं पहले की रिपोर्टों में स्पष्ट किया गया है कि वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग “मानव‑जनित गतिविधियों” — विशेषकर ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन — का परिणाम है।
यदि हम वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से अधिक 1.5 °C से नीचे बनाए रखें, तो कई पृथ्वी‑प्रणाली (जैसे बर्फ़ीले इलाके, समुद्र स्तर, जैव विविधता) को बड़े नुकसान से बचाया जा सकता है।
इसके लिए जरूरी है: 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती, 2050 तक “नेट ज़ीरो (Net Zero)” लक्ष्य, ऊर्जा उपयोग में सुधार, जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल, गैस) पर निर्भरता कम करना।
IPCC रिपोर्ट यह भी बताती है कि केवल ऊर्जा के स्रोत बदलने से काम नहीं चलेगा — उत्पादों (goods), निर्माण, भूमि उपयोग, कृषि, बसने के रूप, कचरा प्रबंधन आदि में भी बदलाव आवश्यक है।
UNEP और अन्य प्रयास — शीतलन, ऊर्जा दक्षता, टिकाऊ तकनीकें
UNEP की हाल‑2025 रिपोर्ट Global Cooling Watch 2025 में सुझाव दिया गया है कि “संधारणीय (sustainable) शीतलन समाधान” अपनाना चाहिए: ऐसे कूलिंग (= ठंडा करने वाले) तकनीकें जो कम ऊर्जाशील हों, कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करें, और इनमें HFC जैसे हानिकारक रेफ्रिजरेंट्स का उपयोग धीरे-धीरे बंद हो।
यह रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि औद्योगिक देशों सहित सभी देशों को अपनी ऊर्जा प्रणालियों, भवनों, उपकरणों आदि में ऊर्जा दक्षता (energy efficiency) को प्राथमिकता देनी चाहिए।
अभ्यास: स्थायी जीवन, वृत्तीय अर्थव्यवस्था, “Nature‑positive” दृष्टिकोण
पारंपरिक “उपभोक्तावाद” (consumerism), अधिक उत्पादन–उपयोग, तीव्र औद्योगीकरण, संसाधन अप्रयुक्त तरीके से निकालने आदि से न केवल जलवायु बल्कि जैव विविधता, मिट्टी, जल चक्र, पारिस्थितिक तंत्र आदि को भारी झटका लग रहा है। IPCC और अन्य अध्ययनों में भूमि उपयोग (land‑use), वनों की कटाई, खाद्य उत्पादन व कचरा प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की बात कही गई है।
एक दृष्टिकोण जिसे विद्यमान पर्यावरण सिद्धांतकार बढ़ावा दे रहे हैं, वह है Nature‑positive जीवन — यानी सिर्फ “विनाश को रोकना” नहीं, बल्कि “प्रकृति की बहाली, जीवों की विविधता, पारिस्थितिक संतुलन” को वापस लाना।
इस प्रकार, टिकाऊ उत्पादन (sustainable manufacturing), पुन: उपयोग (reuse), पुनर्चक्रण (recycling), संसाधन की जिम्मेदार χρήση, वृत्तीय अर्थव्यवस्था (circular economy) आदि पर जोर दिया जा रहा है।
संस्थागत दृष्टिकोण से मिलान — कहां मेल खाता है
आपने जो दृष्टिकोण रखा है — यानी कि
मनुष्य को प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना जीवन शैली चलानी चाहिए,
वस्तुओं का उपयोग सोच‑समझकर, आवश्यकता अनुसार, और उत्पादक/factory/कंपनी की जिम्मेदारी को देखकर करना चाहिए,
स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय और पर्यावरण — तीनों का ध्यान रखना चाहिए,
स्थानीय वातावरण (हवा, पानी, मिट्टी), पारिस्थितिक आवास, जीवों का अधिकार, उत्पादन प्रक्रिया, कचरा, पुनर्चक्रण आदि पर जागरूकता चाहिए —
यह सब दृष्टिकोण पूरी तरह से वैज्ञानिक विश्लेषण और बड़े संस्थानों की सिफारिशों से मेल खाते हैं। जैसा कि IPCC, UNEP, और “Nature‑positive” सिद्धांत कहते हैं — हमें जीवन शैली, उत्पादन, उपभोग, नीतिगत बदलाव, तकनीक, सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर — परिवर्तन की ज़रूरत है।
अतः आपका गद्यांश न केवल एक नैतिक या भावनात्मक अपील है, बल्कि वह वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और नीति‑आधारित दृष्टिकोणों का एक समेकित मॉडल है — और यह बहुत प्रासंगिक है।
⚠️ किन बातों पर अभी सावधानी या चुनौतियाँ हैं (जहाँ संस्थानों और रिपोर्टों में चेतावनी है)
IPCC जैसी रिपोर्टों में कहा गया है कि 1.5 °C लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जितनी तीव्र कटौती की जरूरत है, वह वित्तीय, तकनीकी और राजनीतिक रूप से “चुनौतिपूर्ण” हो सकती है — विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए।
केवल “उत्पादों की गुणवत्ता और कंपनियों के प्रकृति‑अनुरूप उत्पादन” देख लेने भर से काम नहीं चलेगा — कुल आर्थिक प्रणाली, ऊर्जा प्रणाली, नीतियाँ, उपभोग पैटर्न, भूमि उपयोग, कृषि, परिवहन, भवन, शीतलन आदि के व्यापक बदलाव की आवश्यकता है। कई मामलों में यह व्यवस्था, आर्थिक हितों, उद्योग‑निगमों, वैश्विक बाजार आदि के कारण बदलना मुश्किल हो सकता है।
सामाजिक रूप से — लोगों की जागरूकता, सामूहिक संस्कृति, उपभोक्ता आदतें, विकल्पों की उपलब्धता, आर्थिक साधन आदि में असमानता होने की वजह से, बदलाव सबके लिए समान रूप से संभव नहीं हो सकता।
🌱 एक प्रेरणात्मक गद्यांश: जागरूकता और जिम्मेदारी का आह्वान
पृथ्वी—हमारा एक ही घर है। परंतु आज हम अपने विकास की दौड़ में इस घर को घायल कर रहे हैं। वैज्ञानिक रिपोर्टों ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि हम समय रहते नहीं रुके, तो ग्लोबल तापमान पहले से कहीं अधिक बढ़ जाएगा, बर्फ़ीले पहाड़ पिघलेंगे, समुद्र स्तर बढ़ेगा, जल व हवा दूषित होगी, जंगलों और जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ेगा।
लेकिन हमारे पास विकल्प है। हम अपनी जीवन शैली बदल सकते हैं — जितनी ज़रुरत हो, उतनी चीज़ें खरीदें। उन कंपनियों का समर्थन करें जो उत्पादन में प्रकृति का ध्यान रखते हों, टिकाऊ सामग्री और ऊर्जा‑दक्ष तकनीक इस्तेमाल करें। कचरा कम करें, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग को प्राथमिकता दें। बिजली की खपत में सजग रहें, हानिकारक गैसों और रसायनों का इस्तेमाल छोड़ें।
साथ ही, हमें अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी समझनी होगी: अपने आस‑पास के वातावरण, हवा, पानी, मिट्टी का सम्मान करें; पेड़ लगाएं; जीवों का सम्मान करें; उनकी प्राकृतिक आवास की रक्षा करें। अपने स्वास्थ्य, अपने बच्चों की सेहत, समाज की भलाई और प्रकृति—तीनों के लिए हम जिम्मेदार हैं।
अगर हर व्यक्ति थोड़ा‑थोड़ा प्रयास करे, सामूहिक रूप से voice उठाए—तो हम न सिर्फ “ग्लोबल वार्मिंग” बल्कि “प्रकृति की समग्र रक्षा” कर सकते हैं। यही हमारी सच्ची प्रगति होगी।हममें हर एक के भीतर यह शक्ति है कि हम न केवल अपनी बल्कि आने वाली पीढ़ियों की सेहत और धरती की रक्षा करें। वैज्ञानिकों और वैश्विक संस्थाओं ने चेतावनी दी है कि अगर हमने अभी नहीं सोचा — तो प्रकृति, जलवायु, जल स्रोत, वनों और जीवों को गहरा नुकसान होगा। लेकिन यही चेतावनी हमें यह भी बताती है — कि बदलाव संभव है।
हम जब अपनी जीवन शैली, उपभोग की आदतें, खरीदने की प्राथमिकताएँ, उत्पादन और पुनर्चक्रण की सोच बदलेंगे — तब धरती खुद फिर से हरीभरी होगी। हमें छोटी-छोटी रोज़मर्रा की बातें करनी होंगी: आवश्यकता अनुसार चुनना, कम से कचरा उत्पन्न करना, ऊर्जा बचाना, पुन: उपयोग करना, टिकाऊ व स्वच्छ तकनीक अपनाना।
साथ ही, हमें दूसरों को यह जागरूकता देने का काम करना होगा — अपने परिवार, मित्र, समाज, बच्चों तक। क्योंकि जब हम सामूहिक रूप से जागेंगे — तो नीतियाँ बदलेंगी, उत्पादन‑प्रणाली बदलेगी, आर्थिक व सामाजिक ढांचे भी बदलेंगे।
आइए, हम सब एक जिम्मेदार नागरिक बनें — जिनकी सोच, चुनाव और काम, प्रकृति, मानव और पृथ्वी — तीनों को सम्मान देते हों। हम अपनी पीढ़ी के लिए नहीं, बल्कि जीवन के हर रूप और आने वाली पीढ़ियों के लिए यह पृथ्वी सुरक्षित बनाएं। यह हमारा दायित्व है, हमारी सफलता है, और हमारी सच्ची विरासत है।
वर्तमान स्थिति: क्यों “मनुष्य–प्रकृति संघर्ष” गंभीर है
हमारी पृथ्वी का तापमान औद्योगिकीकरण से पहले की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है, मुख्यतः मनुष्य द्वारा जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल, गैस) का अत्यधिक उपयोग, वनों की कटाई, औद्योगिक उत्सर्जन, जमीन और भूमि‑उपयोग में बदलाव, आदि वजहों से।
यह तापमान वृद्धि प्राकृतिक चक्रों के बदलाव, ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र‑स्तर में वृद्धि, मौसम की अनियमितता (अत्यधिक गर्मी, सूखा, अतिवृष्टि), बायो‑विविधता को नुकसान, जल–जलवायु अस्थिरता आदि को बढ़ावा दे रही है।
यानी, यह केवल “मानव विकास” या “प्रगति” नहीं है — यह विकास इस धरती, इन जीवों, और हमारे भविष्य के लिए खतरा बन चुका है।
इसलिए, जैसा आपने कहा, यह ज़रूरी है कि हम सिर्फ विकास के नाम पर चलने वाली प्रगति को नियंत्रित करें, और ऐसा विकास करें जो मानव, प्रकृति और भविष्य — तीनों के लिए सुरक्षित हो।
✅ — वैज्ञानिक समाधान: क्या कहते हैं प्रमुख संस्थान और रिपोर्ट
वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय और संस्थाएँ जैसे Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC), United Nations Environment Programme (UNEP), और अन्य जलवायु‑विचारक संस्थाएँ, निम्नलिखित उपायों को सबसे प्रभावी बताते हैं:
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) में “गहरी, तीव्र और सतत” कटौती: IPCC की रिपोर्ट कहती है कि यदि हम 2030 तक उत्सर्जन में भारी कमी लाएँ और 2050 तक “नेट‑ज़ीरो” लक्ष्य की ओर बढ़ें — तो तापमान वृद्धि को नियंत्रित करना व्यवहार्य हो सकता है।
ऊर्जा प्रणाली का रूपांतरण: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना, बिजली उत्पादन के लिए पवन, सौर, हाइड्रो, अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाना।
निर्माण, भवन, नगरीय योजना, परिवहन में सहायक बदलाव: पुराने भवनों का “ऊर्जा दक्षता” (energy‑efficient) में रूपांतरण, नए भवनों को ऊर्जा-कुशल तरीके से बनाना; सार्वजनिक परिवहन, पैदल या साइकिल यात्रा को बढ़ावा देना; इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर जाना; शहरों में हरित स्थान (green spaces), पेड़‑पौधे, हरित गलियाँ आदि विकसित करना।
उपभोक्तावाद (consumerism) और जीवनशैली में बदलाव: अत्यधिक खरीद‑बेच, लगातार नए सामान, अधिक संसाधन खपत, फैशन‑उपयोग, एक‑बार उपयोग वस्तुएँ (single‑use) आदि छोड़कर — संसाधन उचित मात्रा में, आवश्यकता अनुसार, पुनः उपयोग (reuse), पुनर्चक्रण (recycle), कम‑उर्जा व सतत (sustainable) विकल्प अपनाना। IPCC कहता है कि जीवनशैली और व्यवहार में बदलाव — अकेले — 2050 तक GHG उत्सर्जन 40–70% तक कम कर सकते हैं, यदि विशेषकर उच्च‑उपभोग (wealthy) वर्ग अपना पैटर्न बदलें।
सामाजिक और न्याय‑आधारित दृष्टिकोण: जलवायु परिवर्तन से सबसे ज़्यादा प्रभावित वे लोग होंगे जिनका योगदान सबसे कम है — गरीब, वंचित, अल्प-आयुक्त वर्ग। IPCC और नीति रिपोर्ट कहती हैं कि क्लाइमेट एक्शन में न्याय (equity), सहयोग, वैश्विक और स्थानीय स्तर पर समर्थन महत्वपूर्ण है।
इसका अर्थ है कि केवल सरकारों या बड़े संस्थानों पर निर्भर नहीं होना चाहिए — हर व्यक्ति, हर परिवार, हर समाज का अपना कर्तव्य है।
🌱 — आपके विचार + वैज्ञानिक सुझाव: कैसे बने जीवनशैली और समाज संरचना, जिससे “प्रगति + प्रकृति रक्षा” दोनों हो सकें
आपने जिस तरह से कहा है कि — लोग सामान खरीदते समय, जीवनशैली, उपयोग, कंपनी / फैक्ट्री / उत्पादन प्रक्रिया, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय आदि पर ध्यान दें — यह दृष्टिकोण पूरी तरह से सही दिशा में है। इसे नीचे इस तरह से विकसित किया जा सकता है:
जागरूक उपभोक्ता बनें: सामान खरीदने से पहले सोचें — क्या यह वस्तु / उत्पाद “आवश्यक” है? क्या यह “single‑use” है? क्या उसका विकल्प हो सकता है — जैसे पुन: उपयोग (reuse), या टिकाऊ (durable) सामग्री?
निर्माण/उत्पादन की पारदर्शिता मांगें: यदि संभव हो, जानें कि जिस कंपनी या फैक्ट्री से सामान आ रहा है — उनकी उत्पादन प्रक्रिया में पर्यावरण, श्रमिक, ऊर्जा, कचरा, रसायन आदि का ध्यान रखा जाता है या नहीं। और यदि आप खरीदते हैं, तो ऐसी कंपनियों को प्राथमिकता दें जो पारिस्थितिक-सम्मत और सामाजिक न्याय‑सम्मत हों।
ऊर्जा, जल, संसाधन की खपत कम करें: बिजली, पानी, गैस आदि का उपयोग सोच-समझकर करें; अनावश्यक वरीयताओं (preference) को कम करें; ऊर्जा‑दक्ष उपकरण, LED, कम ऊर्जा वाले उपकरण, सौर या अन्य नवीकरणीय स्रोत आदि अपनाएं।
कचरा प्रबंधन, पुनर्चक्रण, पुन: उपयोग: प्लास्टिक, single‑use वस्तुएँ, रसायनयुक्त वस्तुएँ — इनसे बचें। पुनर्चक्रण (recycle), पुन: उपयोग (reuse), composting, कचरा कम करें — ताकि प्रदूषण और भूमि/जल/हवा पर बोझ न बढ़े।
पर्यावरण‑सचेत सामाजिक जीवन: अपने आस‑पास की हवा, जल, मिट्टी — उनकी गुणवत्ता के प्रति जागरूक रहें; पेड़ लगाएँ; आसपास के जीवों, पक्षियों, पौधों का सम्मान करें; उनके प्राकृतिक आवास (habitat) का सम्मान करें; जंगली एवं पालतू जीवों का दयालु व्यवहार रखें।
समाज में जागरूकता और जिम्मेदारी फैलाएँ: परिवार, मित्र, समुदाय, स्कूल, स्थानीय संस्था — सबके साथ मिलकर पर्यावरण‑शिक्षा, जागरूकता, नीति‑सुझाव, सामूहिक प्रयास करें। अपने उपभोक्ता विकल्पों, मांगों, सामाजिक ज़िम्मेदारी के माध्यम से एक सकारात्मक दबाव (demand) बनाएं — ताकि कंपनियाँ, बाजार, सरकारें — सभी प्रकृति‑हित में काम करें।
इस प्रकार, आपकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों मिलकर एक “नए सभ्य, जिम्मेदार, संतुलित — मानव + प्रकृति” मॉडल का आधार बनाते हैं।
✍️ — समेकित प्रेरणात्मक गद्यांश: “हमारा जिम्मेदार भविष्य”
हम — मानव — प्रकृति से अलग नहीं हैं, बल्कि हम उसी का हिस्सा हैं। जब हम अपनी जीवनशैली, हमारी पसंद, हमारी आवश्यकताएँ समझदारी से चुनेंगे; जब हम खरीदारी, उपयोग, ऊर्जा, संसाधन — सबकुछ सोच-समझकर करेंगे; जब हम पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण, ऊर्जा दक्षता, नवीनीकरणीय ऊर्जा, सार्वजनिक परिवहन, कम‑उर्जा और टिकाऊ विकल्प चुनेंगे; और जब हम अपने पर्यावरण, हमारे आस‑पास की हवा, जल, जमीन, जीवों, पौधों का सम्मान करेंगे — तब हम न केवल अपने लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों, जानवरों, प्रकृति, और पूरी धरती के लिए एक सुरक्षित, स्वस्थ भविस्य बनाएँगे।
वैज्ञानिक संस्थाओं ने चेतावनी दी है: हमें अभी “तीव्र, गहरी और स्थायी” कार्रवाई करनी होगी — नितांत आवश्यक बदलाव — नहीं तो हमारे “कार्बन बजट” खत्म होंगे, ग्लेशियर पिघलेंगे, समुद्र स्तर बढ़ेगा, मौसम चरम होगा, और जल, भोजन, जीवन सब असुरक्षित हो जाएगा।
लेकिन हमें डरकर नहीं — जागरूक होकर, जिम्मेदारी लेकर, विकल्प चुनकर, अपने व्यवहार में बदलाव लाकर — उस भविष्य की ओर कदम बढ़ाना चाहिए, जहां मानव और प्रकृति एक साथ हों, जहाँ विकास हो पर संतुलन भी हो, जहाँ प्रगति हो लेकिन धरती सुरक्षित रहे। यह हमारी — हर व्यक्ति की — जिम्मेदारी है।
अगर हर एक व्यक्ति — जितनी ज़रूरत उतनी ही मांग करे, जितनी आवश्यकता उतनी ही उपभोग करे, जितना संसाधन उपयोग करे उतना ही पुनर्चक्रण / पुन: उपयोग करे, — तो हम न केवल जलवायु परिवर्तन को धीमा करेंगे, बल्कि प्रकृति, मानव, समाज — तीनों को साथ लेकर आगे बढ़ेंगे।
अगर हम सच में चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इस धरती पर सांस लें, हमारी नदियाँ, जंगल, हवाएँ, जानवर — सब सुरक्षित रहें — तो हमें अब से ही अपनी ज़िंदगी बदलनी होगी। हमें न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामाजिक स्तर पर — अपनी ज़रूरत, उपयोग, विकल्प, मांग, कंपनियों व उनकी नीतियों, उत्पादन प्रक्रियाओं — सब पर सोच‑समझ कर कदम उठाना होगा।
हमें याद रखना होगा कि “जितना हम ले सकते हैं, उतना नहीं — जितना हमें चाहिए, उतना लेना है। जितना हम छोड़ सकते हैं, उतना नहीं — जितना हम बचा सकते हैं, उतना बचाना है।”
हमारे छोटे‑छोटे बदलाव — कम बिजली का उपयोग, कम प्लास्टिक, पुन: उपयोग, साइकिल/पैदल, नवीनीकरणीय ऊर्जा, अधिक पेड़‑पौधे, अपने आस‑पास पर्यावरण की देखभाल — बड़े प्रभाव पैदा कर सकते हैं। और जब ऐसा बनेगा, हमारी आवाज़ होगी, हमारी मांग होगी, हमारी संस्कृति होगी — तब न सिर्फ हम, बल्कि बाजार, कंपनियाँ, नीति‑निर्माता — सभी उस दिशा में बदलाव करेंगे।
इस पृथ्वी की रक्षा, मनुष्य की भलाई, और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य — यह हमारा कर्तव्य है, हमारी ज़िम्मेदारी है, और हमारी असली सफलता है।
“यह अंश हमारी पुस्तक सर्व साम्य अद्वैत प्रकृति चेतनवाद दर्शन — भाग 1 : नव सवित तत्व प्रकृतिवाद से लिया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य प्रकृति की सर्वोच्च सत्ता की स्थापना करके विश्व में शांति स्थापित करना है, ताकि धरती पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन में शांति बनी रहे, मनुष्य के जीवन में भी संतुलन और सौहार्द रहे, तथा सभी मनुष्य आपस में मिल-जुलकर अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें। हमारी प्रकृति से प्रार्थना है कि धरती पर स्थित प्रत्येक जीव सुखी रहे, स्वस्थ रहे।” आप भी चाहते हैं विश्व में शांति तो हमसे संपर्क करें।
जीमेल-: cosmicadvaiticconsciousism@gmail.com
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