अँधेरा, गहरा अँधेरा। चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा है। कहीं रोशनी की एक भी किरण नहीं है। हर तरफ अँधेरा ही अँधेरा है। मैं इन आँखों से कुछ भी नहीं देख पा रहा हूँ, बाहर और भीतर। चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा है। मैं अपने अंदर देखने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन वहाँ भी अँधेरा ही है। बाहर से अँधेरा ही अँधेरा है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि जीवन ही अँधेरा हो गया है या अँधेरा ही जीवन है। मुझे यह भी नहीं पता कि जीवन है भी या नहीं। क्या जीवन समाप्त हो गया है या यह एक नए जीवन की शुरुआत है? पता नहीं इस अँधेरे ने मुझे इतना बेचैन कर दिया है कि मैं रोशनी की एक किरण के लिए तरस रहा हूँ। इस अँधेरे ने सब कुछ खत्म कर दिया है। अब मेरी कोई इच्छा नहीं है, कोई चाहत नहीं है, जीने की कोई चाहत नहीं है। सारे सपने अतीत की गोद में दफन हो गए लगते हैं। ऐसा लगता है मानो सपनों के बिना जीवन है। सारे विचार एक जगह रुक गए लगते हैं। मेरी सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो गई मैं अपनी आँखों से कुछ देखना चाहता हूँ, पर अँधेरा इतना घना है कि मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे सब कुछ शून्य हो गया है या मैं शून्य पर खड़ा हूँ जहाँ सृजन संभव नहीं है। और विनाश वहीं से शुरू होता है जहाँ जीवन और मृत्यु शुरू होते हैं, जहाँ समय शुरू होता है और जहाँ समय की गति समाप्त होती है, प्रकृति की रचना यहीं से शुरू होती है और यहीं समाप्त होती है, यह संपूर्ण ब्रह्मांड का केंद्र है, सब कुछ यहीं से शुरू होता है और यहीं समाप्त होता है, मैं एक जगह चल रहा हूँ या खड़ा हूँ, मुझे नहीं पता कि मैं अंधकार में हूँ या अंधकार मेरे भीतर है, मुझे नहीं पता कि यह मेरे जीवन की शुरुआत है या मैं मृत्यु को प्राप्त कर रहा हूँ, मुझे नहीं पता पर मुझे इतना पता है कि कहीं न कहीं प्रकाश की किरण अवश्य मिलेगी और मुझे अवश्य मिलेगी क्योंकि यदि जीवन प्राप्त होता है तो प्रकृति इस अंधकार से बाहर निकालने के लिए प्रकाश देती है, यदि मृत्यु भी होती है तो प्रकृति अपने प्राणों के प्रकाश में जीवन को विलीन कर देती है, प्रत्येक जीवन मृत्यु के बाद प्रकृति की प्राणशक्ति में लीन हो जाता है, शरीर नष्ट हो जाता है और प्राणशक्ति प्रगति करते-करते विलुप्त हो जाती है।